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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७५)


पद:-

अस प्रभु अजर अमर अविकारी। भजत तिनहिं ते जीव सुखारी।

ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि हर शै से हो रं रं जारी।

अनहद सुनै पियै घट अमृत सुर मुनि मिलैं करैं बलिहारी।

नागिनि जगै चलैं षट चक्कर सातौं कमल खिलैं एक तारी।

एक सहस अरतालिस किस्म की गमक स्वरन ते निकसत प्यारी।५।

तन मन मस्त वरनि को पावै सारद शेष की रसना हारी।

छबि सिंगार छटा सिय राम की हर दम सन्मुख रहे निहारी।

अन्त छोड़ि तन अवध में राजै फेरि न आवै गरभ मँझारी।

समय स्वाँस तन दुर्लभ पायो या से चेत करो नर नारी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो अन्धे कहैं पुकारी।१०।