१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७६)
पद:-
ररंकार धुनि हर शै से हो मचा है हा हा कार।
सतगुरु करो भेद तब पावो अन्धे कहैं पुकार।
अमृत पियौ बजै घट बाजा सुर मुनि करते प्यार।
नागिन जगै चक्र षट सोधैं सातौं कमल फुलार।
उड़ैं तरंग रोम सब पुलकै नैन बहै जल धार।५।
तेज होय लय दसा जाव चलि कर्म होंय जरि छार।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम लो दीदार।
धुनै घुनै सो सुनै लखै तब जियति होय निस्तार।
चन्द्र सूर्य दोउ एक जाँय ह्वै सुषमन गोता मार।
नओ द्वार चट बन्द जाँय ह्वै दस में खेल प्रचार।१०।