साईट में खोजें

१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७४)


पद:-

अलकैं मनोहर सुन्दर हरि की हैं घूँघर वाली।

मोर मुकुट सिर कानन कुंडल पीत बसन तन दुति ढाली।

पगन में घूँघुर छम छम बाजैं मुरली तान निराली।

अन्धे कहैं लखै सो प्रानी सूरति हो मतवाली।४।