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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१२४)


पद:-

इम्तिहान हरि सुमिरन का दै कर के होवै पास वही।

तन मन प्रेम लगा के भक्तौं श्री सतगुरु के चरन गही।

सार्टी फिकेट जाय मिलि वाको सुर मुनि बोलैं खूब सही।

अन्धे कहैं धन्य सो प्रानी जा की हरि ढिग ठीक बही।४।