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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३७)


पद:-

सतगुरु किया सुमिरन सिखा इस मार्ग पै जो आ गया।

ध्यान करि तन को मथा मन संग में लिपटा गया।

चोर सब डरि चुप भये उनको पकड़ि जकड़ा गया।

परकास लै औ नाम धुनि रग रोम सब भन्ना गया।४।

सिया राम राधे श्याम कमला बिष्णु सन्मुख छा गया।

नागिनि जगा चक्कर नचा कमलन क उलटि खिला गया।

अनहद सुना अमृत पिया सुर मुनि से नित बतला गया।

अन्धे कहैं तन छोड़ि के जग से वही बिलगा गया।८।


दोहा:-

सतगुरु के ढिग जाइये द्वैत क ताला खोल।

अन्धे कह मानो बचन मिलै वस्तु अनमोल॥