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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३८)


पद:-

अन्धे कहैं निज कर्म धर्म पै ख्याल रखना चाहिये।

मल त्यागि कै ह्वै फर्च फिर असनान करना चाहिये।

लघुशंका के हित पात्र में जल को ले जाना चाहिये।

हाथ पग फिर धोय करके कुल्ला कराना चाहिये।

परसाद जब बनि ठीक हो प्रभु को पवाना चाहिये।

पाय जब सरकार हों तब जल पिलाना चाहिये।६।

दीनता औ शान्ति से बिन्ती सुनाना चाहिये।

होंय अन्तर तब वही परसाद पाना चाहिये।

यह सीख भक्तों नारि नर सब को सिखाना चाहिये।

तन मन बचन से जीवों को हरि में लगाना चाहिये।

दुख देख कर के दया करि उसको समुझाना चाहिये।

तन त्यागि के हरि धाम को चढ़ि यान जाना चाहिये।१२।