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४५६ ॥ श्री वैराग शाह जी ॥

वैराग के भक्त जक्त में जे ते आस किसी की नहिं करते।

सब लोग करैं आशा उनसे वै नाम पै मन हर दम धरते।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि मिली प्रिय श्याम सदा सन्मुख रहते।

अमृत पीवैं बाजा सुनते सुर मुनि सब आय आय मिलते।

नागिन सब चक्कर कमल ठीक क्या भांति भांति खुशबू लहते।

तन त्यागि चलैं साकेत रहैं फिरि गर्भ में कबहूँ नहिं ढहते।६।