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४५५ ॥ श्री धावन शाह जी ॥


पद:-

संग श्याम के रूप रंग मनोहर हरि का॥

जिसने देखा है वही हो गया प्यारा लरिका॥

चारों अजपा चारों ध्यान। सुर मुनि भक्तन का है प्रान॥

सतगुरु करि जो लेवै जान। ता को आवागमन नसान॥

नाम प्रकास समाधि औ ध्यान। हर दम सन्मुख सिय भगवान।५।

बिमल बिमल अनहद की तान। सुनै देव मुनि दें बरदान॥

अमृत टपकै गगन ते जान। मन आनन्द होय करि पान॥

नागिन जगै चक्र घुमरान। सातों कमलन होंय खिलान॥

उड़ै तरंग न सकै बखान। गद गद कंठ रोम पुलकान॥

तन तजि निज पुर कियो पयान। हरि के रंग रूप भा जान॥

नर नारिन हित करों बखान। पढ़ि सुनि गुनि पावैं कल्यान।११।