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४५७ ॥ श्री किशोर शाह जी॥


पद:-

सुमिरन बिन जग रपटी रपटा। जम अन्त करैं झपटी झपटा॥

तन रौंदि करैं खपटी खपटा। गहि बांधि चलैं चपटी चपटा॥

छोड़ैं हौजन दपटी दपटा। हरि भजै नहीं कपटी कपटा॥

तब कहां करौ छपटी छपटा। भोगौ कल्पन नकटी नकटा॥

जो जियति गुनै हपटी हपटा। सो पार होय बकटी बकटा।

सतगुरु बिन दुःख कटी न कटा। यह सृष्टि क खेल मिटी न मिटा।६।