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३८३ ॥ श्री मियां मक्खी हूस जी ॥


पद:-

हरि कछु लै लीजै दस्तूरी।

ठगवा सब धन लूट लिहिन मम कैसे होय सबूरी।

इन से छीनि दिलाय देव मोहिं होवै आशा पूरी।

हर दम तब मैं सुमिरन करिहौं छोड़ि कपट मगरुरी।

अबकी बार नाथ फिर सुनिये फूटै कर्मन चूरी।

मक्खी हूस कहैं प्रभु तुम बिन कौन लिखै मंजूरी।६।