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३८४ ॥ श्री मीना शाह जी ॥

(लखनऊ चौक)

 

जाना ज़रा जाना जरा मुर्शिद के ढिग जाना ज़रा।

सूरति शबद का मार्ग गहि तन मन से लगि जाना ज़रा।

ध्यान धुनि परकाश लै सुधि बुधि को बिसराना ज़रा।

प्रिय श्याम की अदभुत छटा छबि सामने छाना ज़रा।

नागिनि जगा, चक्कर चला, सब कमल उलटाना ज़रा ।५।

 

अमृत को पी अनहद को सुनि सुर मुनि से बतलाना ज़रा।

यह शाह मीना की अरज़ पढ़ि सुनि कै समझाना ज़रा।

तन छोड़ि निज पुर बास लो तब गर्भ का आना ज़रा।८।