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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१८)


पद:-

भजु नाम रामानन्द का। सुख होय परमानन्द का।२।

क्या शंख आनन्द कन्द का। धुनि होत रं रं छन्द का।४।

गाज़ी कहैं आनन्द का। बरनन करै मति मन्द का।६।

यह नाम मम परसन्द का। दुख मिटै भव के फन्द का।८।


दोहा:-

सतगुरु बिन मन चन्द का, हटै न तन से द्वन्द।

गाज़ी कह सुर मुनि कह्यौ, चारौ गल्ली बन्द॥