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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१७)

नाम कि फूल रही फुलवारी।

सतगुरु करि सब भेद जानि लो है तिरगुन ते न्यारी।

उस गुलशन में फूल अतौल हैं पावत दीन भिखारी।

ध्यान ज्ञान विज्ञान के गुल हैं तेज समाधि सुखारी।

रूप के फूल अमोल हैं भक्तों सीता राम निहारी।५।

छबि सिंगार छटा की शोभा है मुद मंगल कारी।

को बरनै देखत बनि आवै फण पति शारद हारी।

जियतै फूल लेहु करि करतल दोनों दिसि बलिहारी।

निज कुल में मति दाग लगावो मिलै न ऐसी बारी।

यह नर देह सुरन को दुर्लभ गाज़ी कहत पुकारी।१०।