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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१९)


पद:-

कला पर कला, कला पर कला यही तेहरी कला भाई।

करो सतगुरु बिधी जानो बरनने में नहीं आई।

नाम जो राशि का हरि का बीज सुर मुनि रहै धाई।

उसी की धुनि जो रं रं है सुनो हर शै से भन्नाई।

जगै नागिन चलै चक्कर खिलैं सब कमल फर्राई।५।

सुनो अनहद पिओ अमृत भरा तहँ कूप हहराई।

छटा सिय राम की सन्मुख रहै तेरे सदा छाई।

कहैं गाज़ी छुटै तन जब चलै निज पुर न चकराई।८।