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३३७॥ श्री दया शाह जी॥


पद:-

नर तन पाय वृथा क्यों खोवत।

समय अमोल जात है यारों मोह नींद में सोवत।

या से चेति करो अब सतगुरु जे सब भय दुख धोवत।

तन के असुर निसरि सब भागैं कर मीजैं औ रोवत।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर दम सुनिये होवत।५।

सन्मुख श्यामा श्याम को निरखौ जो भक्तन मुख जोवत।

दया शाह कहैं तन मन प्रेम में एक तार जो नोवत।

ते तन तजि साकेत बिराजत फिर नहिं कूड़ा ढोवत।८।