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१३० ॥ श्री चक्र पाणि जी ॥


पद:-

कहौ सब जय जय जय यशुमति नन्द।

जिनके गृह हरि बास करत सब के आनन्द कन्द।

सतगुरु करि कै शब्द गहौ जब करि दोउ नयनन बन्द।

सुनो नाम धुनि रं रं होती एक तार क्या छन्द।४।

अनहद नाद बजै घट भीतर छूटै सुनि भ्रम फन्द।

ध्यान समाधि प्रकाश होय जहँ अगणित रवि जिमि चन्द।

सुर मुनि हरि यश आय सुनावैं हर दम उठै अनन्द।

चक्र पाणि कहैं नर तन पाय के जे न भजैं वे मन्द।८।