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१०२ ॥ श्री महदेई माई जी॥


पद:-

जनियां निरखि निरखि सुख लूटौ राधे श्याम खड़े मुसक्यात।

नील पीत परकाश निकलि क्या एकै में लिपटात।

छबि श्रृंगार छटा को बरनै अगणित काम लजात।

सुर मुनि सब नित प्रति गुण गावैं कबहूँ नाहिं सेरात।

दरशन करै फूल बरसावै तन मन माहिं सिहात।

धन्य धन्य बृज बासी हैं सब जहं प्रगटैं पितु मातु।६।

सखा सखिनि संग रहस करत नित औ गृह गृह में खात।

नाना लीला हरदम होती सत्य कहैं हम तात।

सतगुरु करो मिलै तब मारग देखो अचरज बात।

नर तन को लाहो लै लीजै मिलै न ऐसी घात।

महदेई कहै नाम खुलै जब जग से छूटै नात।

नाहीं तो फिर तन पर नर्क में जमन कि चलिहै लात।१२।


दोहा:-

चेली रामानन्द की, महदेई मम नाम।

ग्वाल वंश में जन्म, बरसानो है ग्राम॥