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१०३ ॥ श्री बृज रानी माई जी ॥


पद:-

जै जै श्री राम ब्रह्म दशरथ सुत बनैया।

भरथ लाल बिष्णु अंश लखन लाल शेष अंश

रिपुहन श्री शम्भु अंश आये बनि भैया।

जोड़ी दुउ पीत श्याम लाजत लखि अमित काम

सुमिरै जो नित्य नाम सन्मुख दरसैया।

तन मन से रहत मेल खेलत नित नये खेल

फूलन कच सुभग बेलि शिर पर लहरैया।

आनन्द अति अवध माहिं लखि लखि सुर मुनि सिहाहिं

नित प्रति आवैं औ जाहिं नर तन शुभ धरैया।५।

किंकिणी कटि में बिराजै पौटा क्या पगन राजै

सब मिलि जिहि ओर भाजै छम छम धुनि उठैया।

मातन को बैठि पाय कांधेन पर चढ़त धाय

दोनो कर गले लाय हंसि हंसि लटकैया।

लीला को कहै गाय बरनत नाहीं सेराय

सतगुरु करि लखौ भाय हर दम छबि छैया।८।