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८१ ॥ श्री हलीम जी ॥


पद:-

निज नाम ही से प्रगटैं जप करके देख लीजै।

मुरशिद को करके यारों जप भेद जान लीजै।

तन मन व प्रेम से जब सूरति शब्द पै दीजै।

सन्मुख में राम सीता दीदार हर दम कीजै।

यह तन बसर क सुन्दर जियतै सुफल तो कीजै।

कहता हलीम तन तज हरि पुर में बास लीजै।६।