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८२ ॥ श्री चुपन्ना जी ॥


पद:-

राधा माधौ लखौ निज सन्मुख।

क्या बांकी जोड़ी अलबेली काटत जगत के जाल महादुख।

मुरली मधुर बजाय रिझावत तन मन प्रेम में मस्त महासुख।

कहत चुपन्ना सुर मुनि ध्यावत जानि लेव सब जन ह्वै गुरु मुख।४।