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८० ॥ श्री छरीदा जान जी ॥


पद:-

तेरे ऊपर तन मन धन कुर्वान करूँ श्याम जरा सूरति दिखादे नजर भर के।

भूषण बसन संवारि के प्यारे मुरली मनोहर अधर धर के।

चितवन टेढ़ी चाल अलबेली नूपुर पग छम छम करके।

निसि बासर कल पल भरि नाहीं बिरह कि कर्द जिगर खरके।

बोलो चहै न बोलो प्रियवर तब मूरति सन्मुख छरके।

कहैं छरीदा घट घट बासी काहे हम से फिरत टरके।६।