साईट में खोजें

७ ॥ श्री जराखन दास जी ॥


पद:-

चिन्मय अविनाशी ब्रह्म राम सबसे न्यारे सबमें बासी।

सतगुरु से जानि चित करु एकाग्र मिलि जावै चट तब सुख रासी।

तन मन हो मस्त फिरि क्या कहना धुनि होय ध्यान लै परकाशी।

क्या मारग सूरति शब्द क है दे काटि सबै दुख की फांसी।४।

झरि लागि अमी की गगन से क्या पीजै अनुपम बारह मासी।

बाजा अनहद हर दम सुनिये यह तन है अवध मथुरा काशी।

या में नित सुर मुनि खेल करैं मिलते लिपटाय के करि हांसी।

जियतै में जो नहिं तै करिहै सो तन तजि परिहै चौरासी।८।