साईट में खोजें

६ ॥ श्री उपेन्द्र जी ॥


पद:-

सूरति औ शब्द मार्ग सतगुरु बतलाई।

पीत श्याम सिया राम सन्मुख छबि छाई।

चिन्मय दोनों स्वरूप उपमा जिनकी अनूप

सुर मुनि नित धरत ध्यान तन मन चित लाई।

ब्यापक सब में समान निरखत कोइ भाग्य वान

रहि रहि मुसक्याई।

कथनी को देंय छोड़ि जग मे मुख लेंय मोड़

पासै तब पाई।

जियतै जो जानि लेय सोई सुख खानि लेय

नाहीं तो अन्त फेरि रहि रहि पछिताई।६।