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५ ॥ श्री देवेन्द्र जी ॥


पद:-

जान सतगुरु से नाम का भेव। अगोचर को गोचर करि लेव।१।

सुरति जब शब्द के ऊपर देव। ध्यान धुनि लै प्रकाश को लेव।२।

जियति नर तन को भव से खेव। अन्त फिर चलो अचल पुर लेव।३।

दीनता प्रेम से हरदम धेव। छूटि सब जाय कपट की टेव।४।