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८५६ ॥ श्री कामिल शाह जी ॥


शेर:-

अहिनी न खुद बन जावो करो मुरशिद चलो नमके।

मिलै संसार से फुरसत डरैं सब दूत गण जम के।

ध्यान धुनि नूर लय पावो रूप सन्मुख सदा चमके।

बजैं अनहद सुघर घट में सुनो क्या ताल स्वर चमके।

कहैं कामिल नाम की याद में हर दम रहौ रमके।

नहीं तो छूटना मुश्किल मोह माया पकड़ि धमके।६।


पद:-

हरि सुमिरन बिन सुख नहीं ग़म का पहरा लाग।

कामिल कहैं सुनाय अब कहाँ जाओगे भाग।१।


पद:-

तन मन प्रेम ते ह्वै कर गरजी। सतगुरु ढूंढि लगाओ अरजी।२।

चोर रहे जो तुम संग तरजी। सुनि हरि नाम भगैं भर भर जी।४।

गर्भ बास की कौल के करज़ी। सुमिरन करो नहीं हो फ़रजी।६।

या से तुम्हैं रहेन हम बरजी। कामिल कहैं करो जस मरजी।८।

हिमा सोखतन सब बनो हर दम हो दीदार।

सुर मुनि करैं तवाफ़ नित कामिल कहैं पुकार।१।