साईट में खोजें

८५७ ॥ श्री अवधेश जी ॥


पद:-

भजन हित क्या मिला नर तन इसे बिरथा न खोना जीं।

नहीं तो दुःख ही दुःख हो पड़ै दोज़क में रोना जी।

हवस दुनियावी जब तक है तभी तक तो है सोना जी।

मिलै जब नाम का तोषा तो क्या लोना अलोना जी।

ध्यान लै नूर में मातै रूप सन्मुख सलोना जी।

कहैं अवधेश फिर उसको कभी लागै न टोना जी।६।