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७६३ ॥ श्री चीलर शाह जी ॥

जारी........

वही मामू औ खाला है वही फ़रज़न्द साला है।

वही हमशीरा दुहिता हैं वही दुख सुख से रहिता हैं।

वही जपते जपाते हैं वही भव पार पाते हैं।

वही आते व जाते हैं वही चुप बैठ जाते हैं।

आप ही आप बन बैठैं आप ही आप से ऐठैं।२५।

आप ही आप को मारैं आप ही आप चुपकारैं।

आप को आप राजी कर मिलि रहै आप को हंस कर।

आप ही आप संग भिड़ते आप ही आप को डरते।

आप को आप जन्मावैं आप को आप दुलरावैं।

आप सब में समाये जी आप सब को बनाये जी।३०।

जान सतगुरु से जो लेवै खोजि निज तन में लखि लेवै।

कहैं मिठ्ठू मियां भाई बिना कसरत न कोइ पाई।३२।

७६८ ॥ श्री मकसूमा जी ।


पद:-

करत श्री बृन्दाबन रहस गोपाल।

सखा सखी संग में सब राजत राधे कर गले डाल।

सुर मुनि को मुरली से टेरत सब चलि आवत हाल।

कितने पक्षिन को तन धरि धरि बैठे बृक्षन डाल।

कितने भँवर बने गुंजारतअस परसैं प्रिय लाल।५।

कितने मृग बनि चितवत ठाढ़े मुख से टपके राल।

शारद बीना संग बजावै ब्रह्मा दुँदुभि ताल।

लक्ष्मी जी मिरदंग लिहे कर नारायण करताल।

गणपति जी का बजै पखावज सरस्वति बीणा आल।

डमरू महादेव का बाजै निकसत बेदन ताल।१०।

किट किन किट किन बजत किनावर गिरिजा मातु दयाल।

इस्तराज षट मुख कर सोहत सातों स्वर पर ख्याल।

पवन तनय तम्बूरा लीन्हे भैरव लिहे कपाल।

बीर भद्र तहँ तबला लीन्हे उठती धुम किट ताल।

नारद जी एकतारा लीन्हे गावत चरित बिशाल।१५।

सारंगी लिहे बाल्मीक मुनि धनपति किंगरी आल।

विश्वामित्र सितार लिहे कर मौहर इन्द्र भुवाल।

जल तरंग तहां शची बजावैं धुनि सुनि सबै निहाल।

काली जी डफ़ कर में लीन्हे दुर्गा दारा आल।

ज्वाला जी तहँ झाँझ बजावैं मुख से निकरै ज्वाल।२०।

डंड ताल बलदेव बजावैं धुनि सम एकै ताल।

बिजय घंट तँह चमन बजावैं पाराशर घड़ियाल।

घंटा बामदेव कर लीन्हे गौतम शंख बिशाल।

करदम जी तँह बिगुल बजावैं तुड़ही भृगु जी आल।

लोमश जी कर जोरे निरखैं अत्रि मुनी बेहाल।२५।

लिहे चिकारा ब्यास बजावैं नाग फनी छेत्रपाल।

ब्रह्म कुण्डली कुम्बज के कर वंस गर्ग कर आल।

बजै रवाना दुर्वाशा का बिखुरे केश बिशाल।

श्री शुकदेव नवोयोगेश्वर संग सनकादिक बाल।

नरसिंहा कर नाय लिहे कर सूर्य चन्द्र मतवाल।३०।

श्री वशिष्ठ औ काग अंगिरा गरुड़ देत कर ताल।

चामुण्डा कत्यानी देवी गावैं बांधि पराल।

तीनि औ चारि ताल की धुनि क्या है प्यारी मतवाल।

सखा सखी लकड़िन पर लकड़ी दै कर देते ताल।

परी अप्सरा यक्ष औ किन्नर बहु गंधर्व बिशाल।३५।

नाना भांति के साज देव मुनि रहे बजाय निहाल।

नूपुर सब दोनों पग बांधे होती छम छम चाल।

जारी........