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७१९ ॥ श्री नालायक शाह जी ॥ (२)


चौपाई:-

भजन को नाश करै यह सोंग। रज तम भोजन परत्रिय भोग।१।

या से तन मन लागै रोग। भृस्ट होय जोगिन का जोग।२।

अन्धे बहिरे जग के लोग। नहि जाने धूर्तन का सोंग।३।


दोहा:-

मरी बासना सबै जब सिखा कटी तब जान।

यह सिद्धान्त अपेल है जानै पुरुष महान।१।

ध्यान प्रकाश समाधि धुनी भर्म का भांड़ा फूटि।

तीनि गुणन ते परे भा त्रिगुण जनेऊ टूटि।२।