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७२० ॥ श्री आलस्य शाह जी ॥

सोरठा:-

आलस्य दुख की खानि आलस्य कह आलस्य तजो।

लेव बचन मम मानि सतगुरु करि हरि को भजो।१।

सतगुरु करो मारग मिलै खुलि जाय तब धुनि नाम की।

अद्भुत छटा श्रृंगार छबि हर दम लखौ सिय राम की।२।