७०१ ॥ श्री मतमंद शाह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाने सो इश्वर का बन्दा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम का पाय गयो तब रन्दा।
जियतै बिजय पत्र को पायो छूटा भव का फन्दा।
नागिन जगै चक्र षट बेधै कमल खिलैं जिमि चन्दा।
सन्मुख राम सिया रहें हर दम जो सब सुख के कन्दा।५।
सुर मुनि जै जै कार करैं मिलि कहैं भया निर्द्वन्दा।
अन्त त्यागि तन निजपुर राजै कहैं शाह मतमन्दा।
पढ़ि सुनि गुनि जे भजन न करते वै भक्तों में गन्दा।८।