साईट में खोजें

७०० ॥ श्री बूढ़ी माता ॥

(मुकाम भदमक, रायबरेली)

पद:-

छानो राम नाम की भंग।

सतगुरु करि घोटन बिधि जानो चढ़ि जावै तब रंग।

मन का सोंटा नाम कि कूंड़ी प्रेम प्रतीति उमंग।

ध्यान प्रकाश समाधि धुनी हो जीतो जियतै जंग।

सुर मुनि मिलैं बजै घट अनहद अमी पाय हो चंग।५।

 

नागिन जगै चक्र षट बेधैं कमलन उड़ै तरंग।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख निर्खौ अंग।

या के पाये बिन न तरत कोई चोर न छोड़त संग।

मूक भये बाचाल इसी से गिरि चढ़ि गये अपंग।

अकथ अलेख अपार नाम जस शारद थके भुजंग।१०।

 

या को नर नारी जे चाखैं बज्र समान हों अंग।

माया मृत्यु काल जम गण सब लखि लखि होंय हरंग।१२।