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६५७ ॥ श्री गन्दे शाह जी ॥


पद:-

जाप अजपा बिना जाने कोई भव पार नहि जाता।

करै मुरशिद, गहै मारग तौन इस रंग पर आता।

ध्यान परकाश लय पावै सुनै अनहद अमी पाता।

देव मुनि संग में खेलैं चरित प्रभु के बिमल गाता।

जगै नागिन चलैं चक्कर कमल सातौं को उलटाता।५।

महक क्या स्वरन से निकलै बिहँसता रात दिन माता।

छटा भगवान कमला की हर समय सामने छाता।

दीनता शान्ति धारन कर करौ अब बीज से नाता।

नाम रंकार सुखदाइ जौन शंकर के मन भाता।

जौन अलसाय के बैठे न मानेगा मेरी बाता।१०।

न टूटै द्वैत का धागा किया तन रद्दी का खाता।

अन्त तन त्यागि कह गन्दे जन्मता फिरता दुख पाता।१२।


शेर:-

गन्दे कहैं सुमिरन बिना सब झूँठ जग का खेल है।

जिसने न जाना जियत में सो दोनों दिशि से फेल है।१।

यह तन मिला अनमोल चेतौ नारि नर सुमिरन करो।

गन्दे कहैं मानो बचन अब पग पछारी मत धरो।२।