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६५८ ॥ श्री खोटे शाह जी ॥

 (मुकाम महमदी)

 

पद:-

करम गति करम किहे मिटि जाय।

मुरशिद करै भजन बिधि जानै सो यह आनन्द पाय।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि अनहद साज सुनाय।

कौसर पिये देव मुनि आवें बिहँसि लेइँ उर लाय।

नागिन जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल फुलाय।५।

 

उड़ै तरंग मस्त हो तन मन मुख से बोल न आय।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि छाय।

खोटे कहैं अन्त निजपुर हो आवागमन नसाय।८।

 

शेर:-

चश्म अन्धे गोश बहिरे क्या लखैं औ क्या सुनैं।

खोटे कहैं मुरशिद बिना जो मन चहै सोई धुनैं।१।

दीनता औ शान्ति गहि मुरशिद बचन को मान लो।

खोटे कहैं सब पास ही जियतहि में सुख की खान लो।२।