साईट में खोजें

६५९ ॥ श्री कुबरे शाह जी ॥

(मुकाम निघासन)

पद:-

कुबरे कहैं जे नारि नर मुरशिद को करि जागे नहीं।

ते वृथा जग में हुये टूटे भरम धागे नहीं।

ध्यान धुनि परकाश लय में जाए के पागे नहीं।

कौसर को पी अनहद को सुनि सुर मुनि के सँग लागे नहीं।

शँभु गिरिजा की छटा उनके हुई आगे नहीं।

त्यागि तन दोज़ख पड़े निज धाम को भागे नहीं।६।