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६५६ ॥ श्री ख्वथरे शाह जी ॥


पद:-

बिना रसना के जप करिये यही सच्चा भजन सब से।

करौ मुरशिद पता पाओ भटकते फिरते हो कब से।

ध्यान धुनि नूर लय होवै जियत निर्बैर हो सब से।

सुनौ अनहद पियौ कौसर गगन से चुइ रहा कब से।

मिलैं सुर मुनि कहैं हरि यश बिहँसि बोलो लिपटि सब से।५।

हर समय राम सीता की छटा देखौ खड़े कब से।

अन्त तन त्याग निजपुर लो नात जग का हटा सब से।

कहैं ख्वथरे सखुन मानौ अरज हम कर रहे कब से।८।


शेर:-

करके अमल सुन लीजिए हर शय से रं रं की धुनी।

ख्वथरे कहैं हम से कह्यो अजपा यही सब सुर मुनी।१।

नाम कमला बिष्णु राधे श्याम सीता राम का।

ख्वथरे कहैं सब में रमा सब से बिलग सब काम का।२।