साईट में खोजें

६५५ ॥ श्री काने शाह जी ॥

स्वामी सुखानन्द जी के शिष्य,

स्वामी सुखानन्द जी स्वामी रामानन्द जी के शिष्य

यह पद संवत १९९६ में लिखाए गए।

 

पद:-

कथा औ कीर्तन पूजन पाठ सुमिरन बिना फट फट।

करौ मुरशिद मिलै मारग सँभरि कर तब चलो चट चट।

चोर तन से निकरि भागैं मचाये जौन हैं खट खट।

नाम की धुनि सुनौ रं रं लगी हर शय से है रट रट।

ध्यान परकाश लय पाओ जाय बिधि का लिखा कट कट।५।

 

सुनौ अनहद चखौ अमृत गगन ते चुइ रहा पट पट।

जगै नागिन नचैं चक्कर कमल सातों खिलैं झट झट।

सभी सुर मुनि मिलैं प्रति दिन बिहँसि फिर जाँय तन सट सट।

सामने राधिका मोहन रहैं जो हैं बसे घट घट।

इड़ा औ पिंगला नाड़ी मिलैं सुषमन में जब डट डट।१०।

 

खुलै तब विहँग का कूचा जहां कूचा न कोइ तट तट।

तत्व पांचों सुधैं दरशैं होइ अन्तर लखौ हट हट।

जियत निर्वैर निर्भय हो भरम भाँडा फुटै भट भट।

मार्ग यह है निवृत्ती का जाय बिरलै कोई छँट छँट।

दीनता शान्ति धारन कर कमर कसि कै बनौ नट नट।१५।

 

लोक सब घूमि लख आओ लेहु गहि शब्द की लट लट।

महक क्या स्वरन ते निकसै बिबिधि परकार की वँट वँट।

तामसी राजसी भोजन त्याग दो खाव मत गट गट।

बिना इन्द्रिन दमन कीन्हे नहीं मन मानता फट फट।

कहैं काने छुटै तन जब लेउ अपना वतन अँट अँट।२०।

 

पद:-

काने काने काने हम तो जन्म के काने काने।

मुरशिद किया भजन बिधि जाना तन मन प्रेम में साने।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शय से भन्नाने।

कौसर पिया सुना घट अनहद सुर मुनि सँग बतलाने।

सन्मुख हर दम राधा माधव रहैं छटा छबि ताने।५।

 

को बरनै वह झाँकी वाँकी शारद शेष लजाने।

नर तन पाय करें जे सुमिरन ते हैं चतुर सयाने।

नाहीं तो तन त्यागि नर्क पड़ि यम के हाथ बिकाने।

माता पिता भ्राता सुत बनिता धन मकान लपिटाने।

जानत हैं कोइ संग न जाई तन से जहँ अलिगाने।१०।