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६५० ॥ श्री ठाकुर गम्भीर सिंह जी ॥


पद:-

बैठो राम नाम की नौका।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो मिलै न ऐसा मौका।

जियतै तन के असुर जीति लो गुनौ बचन तब गौंका।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय मिलै मिटै जग घौंका।

सन्मुख राम सिया की झांकी हर दम फरक न जौका।५।

शान्ति दीनता प्रेम से भाई फैलत नाम का बौंका।

बृक्ष बिशाल फूल फल देवै लागै फिर नहिं हौका।

अन्त त्यागि तन निजपुर लीजै जहाँ न पहुँचत रौंका।८।