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६४९ ॥ श्री ढङ्गी माई जी ॥


पद:-

बैठो राम नाम की किश्ती।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जीतो जियतै कुश्ती।

तन के असुर भागि सब जावैं रहै न तनिको हस्ती।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय होय जाय चढ़ि मस्ती।

श्यामा श्याम की झांकी सन्मुख हर दम निरखौ हंसती।५।

सुर मुनि की टोली नित आवै हंसि हंसि उर में लसती।

कमल चक्र कुंडलनी जानो अनहद धुनि क्या सस्ती।

ढङ्गी कहैं अन्त तन तजि कै बैठो चलि निज बस्ती।८।