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६५१ ॥ श्री खबूचड़ शाह जी ॥


पद:-

चुहिये राम नाम की गेंड़ी।

सतगुरु करि जप भेद जान लो दखल करौ सब मेड़ी।२।

सारे असुर शान्त ह्वै जावैं शाखा बिन जिमि पेंड़ी।

ध्यान धुनी लय रूप लखि काटो भव की बेंड़ी।

जो न भजौ तो फिर नर तन तजि होहू आय जग भेड़ी।

कहैं खबूचड़ शाह बचन मम गुनौ वृथा नहिं छेड़ी।६।