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६३३ ॥ श्री लोने सिंह जी ॥


पद:-

जानो गुप्त भजन सुखदाई।

सतगुरु से लै करके कुंजी खोलो ताला भाई।

जिह्वा कर औ नयन न डोलै हर दम परै सुनाई।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै अनहद बजै बधाई।

सुर मुनि मिलैं सुनावैं हरि यश प्रेम करैं उर लाई।५।

राम सिया की झांकी वांकी सन्मुख में छबि छाई।

सारद शेष महेश गणेश औ लोमश हनुमत गाई।

अजपा रेफ बिन्दु की बानी जो हम तुम्हैं बताई।

जियत जानि के अन्त त्यागि तन सो साकेत सिधाई।९।