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६३४ ॥ श्री देवानी सिंह जी ॥


पद:-

कीजै राम नाम की जाप।

सतगुरु से बिधि जानि के भाई मेटौ भव की ताप।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै जहां जात मिटि आप।

धुनी नाम की खुलै अखण्डित जो सब की है नाप।

सन्मुख सीता राम बिराजैं विश्व के माई बाप।५।

सुर मुनि मिलैं सुनो नित अनहद उघरै हिय की झांप।

तन से असुरन होय बिदाई काल मृत्यु जांय कांप।

अन्त त्यागि तन निज पुर जावो बैठि जाव चुप चाप।८।