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६३२ ॥ श्री देवी सिंह जी ॥


पद:-

सतगुरु करि हरि भजु त्याग कपट।

छूटै तब जियतै भव की लपट।

धुनि ध्यान प्रकाश औ लय में छपट।

अनहद सुनु सुर मुनि मिलैं चपट।

सन्मुख सिय राम सकै को उपट।५।

सुमिरन बिन तुम से नीक खपट।

करिहैं चित चेत के जवन रपट।

सो तन तजि निज पुर जांय झपट।८।