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६३१ ॥ श्री ठाकुर शिव दयाल सिंह जी ॥


पद:-

सुमिरन बिन जीव नरक परत होखे।

भेद बिना पाये कभी कोई न सरत होखे।

सतगुरु करि भजि जियत तरत होखे।

ध्यान परकाश धुनि लय में ठरत होखे।

सुर मुनि आय आय जय जय करत होखे।५।

राधे श्याम झांकी सन्मुख नेक न टरत होखे।

दीन बनि मानि बयन धीर जे धरत होखे।

अन्त तन त्यागि फेरि जग न गिरत होखे।८।