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६२२ ॥ श्री भोला सिंह जी ॥


पद:-

धागा सत्य नाम का धारो।

सतगुरु से बांधन विधि जानो असुरन पकड़ि पछारो।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय सन्मुख रूप निहारो।

सुर मुनि संग उमंग से बैठैं हरि यश सुनो उचारो।

अनहद नाद सुनो घट बाजै हर दम हा हा कारो।५।

अमृत पिओ गगन से टपकैं कटु खट्टा नहीं खारो।

स्वाद बताय सकै को वाको खट रस ते वह न्यारो।

नागिन जगैं चक्र सब घूमैं फूलैं कमल निहारो।

ब्रह्म अग्नि से कर्म शुभाशुभ जियत मुक्त ह्वै जारो।

तब से दास राम सीता के जग से जीव निसारो।१०।

कोमल बचन सुनत सब हर्षैं सब के तन मन ढारो।

सूरति शब्द क मारग यह है जानत जानन हारो।

अजपा जाप होत निशि बासर रं रं रं सुख सारो।

मार्ग पिपील मीन के आगे विहंग कहावत प्यारो।

या में ह्वै कर चलै जवन कोई सो निज घर पगु धारो।

शान्ति दीनता प्रेम गहे सो भोला कहि नहिं हारो।१६।