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६२३ ॥ श्री गहनी नाथ जी ॥


पद:-

पहिनो सुख मुद्रा नाम को।

सतगुरु करि पहिरन बिधि जानो करो सुफल नर चाम को।

श्रवण ते रं रं रं धुनि हो निरखो राधे श्याम को।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै पहुँचि जाव निज धाम को।

अनहद सुनो देव मुनि दर्शैं यश गावैं गुण ग्राम को।५।

अमृत छकौ कहौ क्या मुख से मगन रहौ बसु याम को।

नागिन जगै चक्र सब बेधै कमल खिलैं फिर थाम को।

सूरति शब्द की जाप है अजपा सुगम बड़ी नर बाम को।

सुखमन स्वांस विहंग मारग में पहुँचि लियो विश्राम को।

रवि शसि वारि बतासि जाप नहिं ऐसो विमल मुकाम को।१०।

अगणित सन्त बैठ यानन पर रूप रंग बनि राम को।

गहनी नाथ कहैं मम बानी गहै सो ले आराम को।१३।


शेर:-

पासै अमी पाते नहीं नित तोय खारी पा रहे।

सतगुरु बिना गहनी कहैं, दिन मोह नींद में जा रहे।१।