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६२१ ॥ श्री बहादुर सिंह जी ॥


पद:-

शिष्य भये सोरह सहस्त्र क्या यमन जाति के नर नारी।

स्वामी रामानन्द दया निधि जियति उन्है भव से तारी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोवन हो हर वारी।

राम सिया घनश्याम प्रिया वो रमा विष्णु की छबि प्यारी।

हर दम सन्मुख में सब देखैं संसकार के अनुसारी।५।

अनहद सुनैं देव मुनि दर्शैं कर निज निज शिर पर धारी।

नागिन जगी चक्र सब बेधे कमल खिले खुशबू न्यारी।

सूरति शब्द क जाप बतायो विहंग मार्ग क्या सुखकारी।

ब्रह्म अग्नि या से भइ प्रगट कर्म शुभा शुभ भे जरि छारी।

सत रज तम औ अजा असुर दल सब की हिम्मत गई हारी।१०।

ब्राह्मण क्षत्री वैश्य शूद्र वो एक करोड़ कीन पारी।

कहैं बहादुर सिंह कहौ श्री स्वामी जी की बलिहारी।१२।