साईट में खोजें

५९३ ॥ श्री रसीली जान जी ॥


पद:-

मुरशिद बचन पर जाय तुल जियतै में वह सब पायगा।

धुनि ध्यान लय परकाश पाकर रूप सन्मुख छायगा।

अनहद सुनै घट में बजै सुर मुनि के संग बतलायगा।

दुख सुख सहै मन नहिं बहै हरि यश बिमल नित गायगा।

बानी मधुर मुख से कहै जो सुनि हिय हर्षायगा।

कहती रसीली जान तन तजि कै अचल पुर जायगा।६।