साईट में खोजें

५४२ ॥ श्री रबाबी अबदुल गफ्फ़ार जी ॥ (२)

मति कीजै पर दारा से प्रीति दाग तन लागि जैहैं रे।

यह संग करत अनरीति काम मन जागि जैहैं रे।

सतगुरु करि जप की रीति जानि जे पागि जैहैं रे।

ते जग में पावैं जीति असुर सब भागि जैहैं रे।

मिलै निज कुल की क्या नीति सन्मुख हरि तागि जैहैं रे।५।

लय ध्यान प्रकाश में बीति समय दिन भागि जैहैं रे।

मम बचन वज्र की भीति गहैं नहि टांगि जैहैं रे।

जिनको नहि नाम में धीति पकड़ ते नांगि जैहैं रे।८।