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५०७ ॥ श्री पण्डित चूड़ामणि जी पाण्डेय ॥


पद:-

सुनिये लंगर माई रारि करतु है।

मैं यमुना जल लै के चलों जब गगरी गिराय मोरी वहियां धरतु है।

हाट बाट एकौ नहिं मानत नेकौं नहिं यह धीर घरतु है।

निशि में सोवत जाय जगावत मुख हंसि चूमत हंसि लिपट परतु है।

लाज हाट में बेंचि के खायो चोरी करत नहि पेट भरतु है।५।

दूध दही माखन सब लूटत मुरली बजाय मेरे मन को हरतु है।

सासु ससुर मेरी नन्द रिसाती रोय सहौं उर दाह बरतु हैं।

बार बार मैं बरज के हारी वसन चलत मेरा छूट धरतु है।

निरखे बिना श्याम के अब तो नैनन ते मेरे नीर झरतु है।

सतगुरु करि देखै जो प्रभू छवि सो तन मन के पाप छरतु है।१०।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि पाय जगत में फिर न सरतु है।

सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद चखै अमी वसु याम गरतु है।१२।


शेर:-

घनश्याम के सौन्दर्य्य सम सौन्दर्य्य किसका है।

सतगुरु करौ लखौ सब बिश्व जिसका है॥