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५०६ ॥ श्री लम्बू शाह जी नियारिया॥


पद:-

नाम धन पाये बिना संसार में तन है वृथा।

ध्यान लय जाये बिना संसार में तन है वृथा।

परकाश लय होये बिना संसार में तन है वृथा।

अनहद के चटकाये बिना संसार में तन है वृथा।

सुर मुनि से बतलाये बिना संसार में तन है वृथा।५।

सन्मुख में प्रभू छाये बिना संसार में तन है वृथा।

तन तजि के ढिग जाये बिना संसार तन में है वृथा।

मुरशिद के खटकाये बिना संसार में तन है वृथा।८।


शेर:-

तन मन की एकता हो फट जाय आबरन।

तब यार बे खता हो लगि जाय चित चरन।१।

तब तो जवां से नाम को तुम जप नहीं सकते।

अन्दर से नाम धुनि हो छबि रूप की लखते।२।


पद:-

सिया राम की छटा छवि प्रिय श्याम की छटा छवि

श्री विष्णु की छटा छवि अद्भुद करै को वरनन।

मुरशिद करै भजै नित चित को लगा के चरनन।

धुनि ध्यान नूर लय हो सुर मुनि मिलैं मगन मन।

अनहद बजै सुनै घट अमृत पियै रहा छन।

जियतै में जान करके जो जाय यार यहं बन।

तन तजि वतन हो रुखसत मिट जाय गर्भ का रिन।६।